तुम्हारे तालिबे-दीदार हम भी हैं ज़रा सोचो / परमानन्द शर्मा 'शरर'
तुम्हारे तालिबे -दीदार हम भी हैं ज़रा सोचो
फ़िदा-ए-हर अदा-ए यार हम भी हैं ज़रा सोचो
हमें लब खोलने पर मत करो मजबूर महफ़िल में
हदीसे-मआनी-ए-गुफ़्तार<ref>हदीस (क़ुरआन की आयत)की तरह सच्ची बात कहने वाले</ref> हम भी हैं ज़रा सोचो
तसल्लत<ref>नियन्त्रण</ref> है तुम्हारा गर दरो-दीवारे-काबा पर
नशीने-आस्ताने-यार हम भी है ज़रा सोचो
तमन्नाओ! फ़िज़ाओ ! हसरतो ! पामाल<ref>कुचले हुए</ref> अरमानो!
तुम्हारी तरह बे-घर-बार हम भी है ज़रा सोचो
बहारों की दुहाई देने वाले सिहने -गुलशन में
ख़िज़ाँ परवरदा<ref>पतझड़ के पाले हुए</ref>बर्गो-बार<ref> पत्ते और टहनियाँ</ref> हम भी है ज़रा सोचो
न जाने आज तक क्यों बज़्मे-दुनिया उखड़ी-उखड़ी है
यहाँ आए हज़ारों बार हम भी हैं ज़रा सो़चो
उजालों पर हुई हैं ज़ुल्मतें <ref>अँधेरे</ref>हावी ज़माने में
शरीके-हाल-ए-ज़ुल्फ़े यार हम भी हैं ज़रा सो़चो
रहेगा ता-बै-क:<ref>कब तक</ref> हायल<ref>बाधक</ref> ‘शरर’ पर्दा तग़ाफ़ुल <ref>उपेक्षा</ref>का
रहीने-रहमते-सरकार<ref>कृपा पर निर्भर</ref>हम भी हैं ज़रा सोचो