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तुम्हारे दर पे जब भी सर झुका है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हारे दर पे जब भी सिर झुका है
अजब सा चैन इस दिल को मिला है
यहाँ जो जी रहे मुँह पेट बाँधे
उन्हीं पर तो जमाना ये टिका है
हकीकत को किया मंजूर जब भी
ज़माने में बड़ा चर्चा हुआ है
उठी हैं उंगलियां हरदम उसी पर
किसी ने काम जब अच्छा किया है
कहा ना और फिर हँसने लगा वो
अजब इक़रार की उसकी अदा है
दिखे ग़र मोड़ तो घबरा न जाना
कि उसके बाद भी एक रास्ता है
डुबो सकती नहीं मझधार उसको
नदी में साथ जिसके नाखुदा है