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तुम्हारे नाम का जल / सुशीला पुरी
Kavita Kosh से
तुम्हारा नाम
अपने अर्थ की आभा में
चमकता है
जैसे अपने नमक के साथ
धीर धरे सागर हो
धैर्य की अटूट परम्परा में
तुम्हारे नाम का वजूद
समय के ठोस अँधेरे को भेदकर
रौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा-कतरा नहा उठती हूँ
तुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
मै भीगती हूँ नंगे पाँव
साइबेरियन पंछियों की तरह
तुम्हारे नाम का जल
क्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किए
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा ।