तुम्हारे नाम / बाबूलाल मधुकर
तुम्हारी अर्चना कर सकूँ
तुम्हारी वन्दना कर सकूँ
ऐसा कोई विश्वास तो
तुमने दिया नहीं!
अपनी वंशावली और
भौगोलिक सीमा-सुरक्षा का ध्यान रखकर
हमारी असुरक्षित काया को
कुट्टी-कुट्टी काटकर आपसी हित में बाँटने—
के सिवा और क्या किया है तुमने?
हमारे श्रम के पुण्य फल पर कुंडली मारकर बैठने
के सिवा और क्या किया है तुमने?
हमें दरकिनार कर—
आज भी आग पर ढाहने
के सिवा और क्या किया है तुमने?
मैं मुक्त नहीं हो सकूँ
इसके लिए मकड़े का जाल बुनने
के सिवा और क्या किया है तुमने?
अभी-अभी जो मंगल-कलश चढ़ा है
उसे रोटी से बड़ा समझने—
के सिवा और क्या किया है तुमने?
यह सब कुछ करना
कितनी बड़ी बेईमानी है
जबकि लाल अभी गंगा का पानी है
उसे धूमिल और टेस करने
के सिवा और क्या किया है तुमने?
तुम्हारी अर्चना कर सकूँ
तुम्हारी वन्दना कर सकूँ
ऐसा कोई विश्वास तो
तुमने दिया ही नहीं!!