तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
तुम्हीं नवाज़ते तो क्यों इधर-उधर जाते
किसी के नाम से मंसूब ये इमारत थी
बदन सराय नहीं था कि सब ठहर जाते
तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
तुम्हीं नवाज़ते तो क्यों इधर-उधर जाते
किसी के नाम से मंसूब ये इमारत थी
बदन सराय नहीं था कि सब ठहर जाते