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तुम्हारे प्यार के दो-चार क्षण / सुमित्रा कुमारी सिन्हा

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तुम्हारे प्यार के दो-चार क्षण पाकर ।


न जानी राह की दूरी,

थकन दुख दर्द सब भूले,

खिली,ज्यों फूल खिलता है-

तुम्हारी चांदनी में डूब-उतरा कर ।


अमर मैं बन गई क्षण में,

नखत सा बन गया जीवन,

उठी,ज्यों गीत उठता है-

तुम्हारी बाँसुरी से मुग्ध लहरा कर ।


हुए सच प्रात के सपने,

भरे गति से अचेतन भी,

चली,ज्यों वायु चलती है-

तुम्हारी साँस से लय तान गति पा कर ।