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तुम्हारे प्यार में मोहन हमारा मन दिवाना है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हारे प्यार में मोहन हमारा मन दिवाना है।
दयासागर तुम्हारे विरद को अब आजमाना है॥
सुना तारे अनेक है अघी गणिका अजामिल से
करो यह फैसला तुम को विरद कैसे निभाना है॥
नहीं कुछ ढंग गुण मुझ में न कोई भक्ति ही है कि
यही जाना तुम्हारे दर पर ही अपना ठिकाना है॥
सदा चंचल हृदय मेरा भटकता दुर्विचारों में
क्षमा कर दोष सब मेरे तुम्हें ही अब बचाना है॥
हमेशा ही हमें माया प्रलोभन दे के बहकाती
तुम्हारी याद ही जीने का मेरे अब बहाना है॥
लिखा है धड़कनों पर नाम मनमोहन तुम्हारा ही
लिए हूँ पाप की गठरी तुम्हें ही अब उठाना है॥
तुम्हारे हाथ हमने ज़िन्दगी का भार है सौंपा
उठा है ज्वार सागर में हमें उस पार जाना है॥