भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे प्रेम में - 2 / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
तुम्हारे प्रेम में
मैं पिघली
और तुमने
एक साँचे में मुझे भरकर
धूप में रख दिया।
सूखने पर बनी ’मैं’
तुम्हारी मनचाही थी...
आज
धूप भरे कई दिनों के बाद
तुम खोजते हो
उस स्त्री को
जिसे कभी तुमने
प्रेम किया था...
बीते कई सालों से
तुम्हारे साँचे में
ढल चुकी
‘मैं’ भी
उसी को खोजती हूँ...