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तुम्हारे बच्चे जीवित रहें / राकेश रंजन

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इस निस्तब्ध रात में
कोई बच्चा रो रहा है
मेरे सीने पर
सिर पटक रहा
पछुआ के सूखे स्तनों से चिपका
उसका विलाप

कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा
कहीं मुझे भ्रम तो नहीं हो रहा
अक्सर बिल्लियाँ भी रोती हैं
बच्चों की तरह

अब तो बाज़ार में
ऐसा हॉर्न मिलने लगा है
जिसे बजाओ
तो सुनाई पड़ता है
बच्चे का बिलखना

ऐसा भी भ्रम
मत रचो हत्यारो
मत करो ऐसे अनर्थ की ईजाद
कि कहीं कोई बच्चा रोए
तो आदमी सोचे
किसी ने हॉर्न बजाया होगा

दादी कहती थी
अकाल मरे हुए बच्चे
रोते हैं रात के अँधेरे में
उनकी आत्माएँ खोजती हैं
माँ का आँचल

क्या तुम्हें सुनाई देती हैं
मरे हुए बच्चों की आवाज़ें
जिन्हें रोगों धमाकों आपदाओं ने मारा
हमने मारा
जन्म से पहले
और जन्म के बाद
हम हवस के मारों ने मारा जिन बच्चों को
जिनके खिलने से शरद, खिलखिलाने से वसन्त
क्या तुम्हें सुनाई देती हैं
मरे हुए बच्चों की आवाज़ें
सुनो
रात की गहरी निस्तब्धता में
धीरे बहुत धीरे
तुम्हें सुनाई देगा उनका बिलखना
कभी गुज़रो
उनकी गँड़ातियों के पास से
तुम्हारी देह सिहर उठेगी

ऐसे भी बच्चे
जिनकी मौत को
मिट्टी भी नसीब न हो सकी
वे फिरकियों की तरह नाच रहे थे
फुग्गों की तरह
आसमान में उड़ने को बेताब
जब उनके लिए आया मौत का सैलाब
वे सुबह के मलबे में शाम की रोटी तलाश रहे थे
जब उन पर बम गिराए गए
जब उनके घरों में आग लगाई गई
वे सोए थे खरगोश-टोपी पहने हुए
अपने ही आकार के तकियों की ओट में
जब आग बुझी
उनमें और तकियों में फर्क करना मुश्किल था
वे इतने अबोध थे
कि अपने जन्म लेने तक को नहीं जानते थे
और मरते वक़्त
उन्हें बोध नहीं था
कि मर रहे हैं

वे कभी नहीं जान पाएँगे
ममता के उजड़ चुके नीड़ का अभाव
वे पेड़ जानते हैं
जिनकी मँजरियाँ झँझा में झड़ गई हैं
जिनके लिए वसन्त
अब सिर्फ़ धूल है
और सारा ऋतुचक्र
चिलचिलाती मरीचिका
वे नदियाँ जानती हैं
जिनका जल सूख गया है
जिनकी गोद में अब केवल
भँसी हुई नावें
और टूटी पतवारें

वे माँएँ जानती हैं
जिनके सपनों में आते हैं
उनके मरे हुए बच्चे
जिन्हें गोद में लेकर
वे छाती से लगा भी नहीं पातीं
बस पागल की तरह
वे अपने प्राणपखेरुओं को
पकड़ने दौड़ती हैं
और अचानक
रात की निस्तब्धता में
सायरन की तरह गूँजता है
उनका चीत्कार

भीड़
और भगदड़ में बिछड़े बच्चे
फ़सादों में लापता बच्चे
कभी लौट भी आते हैं
कोई लौट आता है बरसों बाद
अपने बचपन की पगडण्डियों को पहचानता हुआ
अपने मृत होने की मान्यता को झूठ साबित करता हुआ
कहता है मैं अमुक शहर में था
भूल गया था घर का रास्ता
इतने साल
मैंने कहाँ-कहाँ खोजा, कितनी ख़ाक छानी
मेरी धुँधली याद में
बस तेरा चेहरा था अम्मा
इतना ज़हर पीकर भी
मैं कभी नहीं भूला
तेरे आँचल की गन्ध
मैं तेरा ही बच्चा हूँ अम्मा
मेरे बाएँ कन्धे पर तिल है
तू जानती है न अम्मा
तेरी दाईं कलाई पर गोदना है
उस पर लिखा है बाबू का नाम
मुझे याद है अम्मा

ठगों
और तस्करों के चंगुल में फँसे बच्चे
कभी लौट भी आते हैं
पर तुम मर भी जाओ तो नहीं लौटते
मरे हुए बच्चे

तुम्हारे बच्चे जीवित रहें, दोस्त
दुआ है
जब वे रोएँ
तुम उन्हें सीने से लगा लो!