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तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
तुम्हारे बाद भी रातें सजी हुई हैं यहाँ
जले हैं दीप, पर आँखें बुझी हुई हैं यहाँ
तेरी विदाई को अर्सा गुज़र गया है मगर
इसी बेक़ुए पे घड़ियाँ रूकी हुई हैं यहाँ
चलो शुरू-ए-सफ़र अब नई जगह से करें
बड़ी तवील क़तारें लगी हुई हैं यहाँ
गुज़र गई शबे-वादा मगर उसी दिन से
तुम्हारी आस में रातें थमी हुई हैं यहाँ
चले तो आए हो महफ़िल में 'ख़ानक़ाही' तुम
मगर तमाम निशस्तें भरी हुई हैं यहाँ
1. बेक़ूए- स्थान
2. तवील- लंबी