तुम्हारे बिन हमारे दिन / हरिवंश प्रभात
तुम्हारे बिन, हमारे दिन
कभी काटे नहीं कटते
ये तन्हाई के दुखते पल
कभी बाँटे नहीं बंटते। तुम्हारे बिन
ये पिंजड़ा तोड़ उड़ जाता
गगन को भेदकर रखता
हवायें चीर देता मैं
समंदर सोखकर रखता,
मगर ये घाट और ये पाट
भी पाटे नहीं पटते। तुम्हारे बिन
हृदय के द्वार खोले
मूक आमंत्रण भी रूठे हैं
उमर लम्बी रही किस काम की
जब तपन अनूठे हैं,
जुदाई से मिले अभिशाप
मिटाये भी नहीं मिटते। तुम्हारे बिन
बिना जल बहती ना सरिता
परिन्दे उड़ते ना बिन पर,
तपिश की रेत पर गुज़रे
अकेला प्यासा मन बनकर,
कहाँ है पी, कहाँ है पी
पपीहा थक गया रटते। तुम्हारे बिन
क्षितिज के छोर पर ठिठका
हुआ क्षण रह गया हूँ मैं,
कई भावों के दरिया में
अकेला बह रहा हूँ मैं,
लगे अलगाव जनमों के
हटाये भी नहीं हटते। तुम्हारे बिन