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तुम्हारे रहते किसी और से प्रेम / शिवांगी गोयल
Kavita Kosh से
मैंने ग़लत किया है ना !
तुम्हारे रहते किसी और से प्रेम
कैसे हो गई ये ग़लती मुझसे?
तुमसे तो कभी हो ही नहीं सकती थी!
गलती नहीं, पाप है ये
पाप, जिसका कोई प्रायश्चित नहीं!
अब तुम!
तुम्हारा दिल टूटा है हक है तुम्हें
हक है कि तुम सबको बता दो नीचता मेरी
मेरी निर्लज्जता, अश्लीलता हर बात वो
जिससे कभी हाँ! इश्क़ था तुमको
तुम्हें हक़ है कि मेरा जिस्म, मेरी रूह तक छिल दो
या कि तेजाब से चेहरा गला दो आज तुम मेरा
क्यूंकि प्रेम तो बन्धन है ना,
बस तुमसे ही होगा
किसी से हो गया कैसे?
कि ये तो पाप है बेहद
पाप, जिसका कोई प्रायश्चित नहीं!