तुम्हारे रूप का उन्माद / विमल राजस्थानी
तुम्हारी याद आती है
शिशिर की चाँदनी जब शबनमी आँचल उड़ाती है
हवा की रेशमी ठिठुरन स्मृति के दंश लाती है
निशा के आँसुओं से तर-बतर सुनसान पगडंडी
मधुर पद-चाप चिर परिचित सुरीली सुन न पाती है
तुम्हारी याद आती है
सँभाले शीश पर घट मोतियों के दूर्वादल है
बड़ा मदमस्त है मौसम, चमन बेजार, बेकल है
हिना की तुरहियाँ झुक-झूम बे आवाज गाती हैं
तुम्हारे रूप का उन्माद छू कर कसमसाती हैं
तुम्हारी याद आती है
महावर से रची उन उँगलियों का स्पर्श मदिरीला
तड़पती तितलियाँ पाती नहीं हैं स्नेह शर्मीला
न सुरभित साँस की झकझोर सौ-सौ स्वर्ग लाती है
खुले उन कुन्तलों की मेघ-छाया मिल न पाती है
तुम्हारी याद आती है
हिरनियाँ खोज कर परिश्रांत बैठीं नयन सुरमीले
कुआँरी कोंपलें ढूँढ़े अधर के स्पर्श अरुणीले
उरोजों की उठन जब तप्त साँसें छू न पाती है
तिमिर-आच्छन्न उर के कक्ष में चुप लौट जाती है
तुम्हारी याद आती है