तुम्हारे लिए मुस्कुराती सहर है / फ़व्वाद अहमद
तुम्हारे लिए मुस्कुराती सहर है
हमारे लिए रात का ये नगर है
अकेले यहाँ बैठ कर क्या करेंगे
बुलाया है जिस ने हमें वो किधर है
परेशाँ हूँ किस किस का सुर्मा बनाऊँ
यहाँ तो हर इक की उसी पर नज़र है
उजाला हैं रूख़्सार जादू हैं आँखें
ब-ज़ाहिर वो सब की तरह इक बशर है
वो जिस ने हमेशा हमें दुख दिए हैं
तमाशा तो ये है वही चारागर है
निकल कर वहाँ से कहीं दिल न ठहरा
बिचारा अभी तक यहाँ दर-ब-दर है
किसी दिन ये पत्थर भी बातें करेगा
मोहब्बत की नज़रों में इतना असर है
जो पल्कों से गिर जाए आँसू का क़तरा
जो पल्कों में रह जाएगा वो गुहर है
वो ज़िल्लत वो ख़्वारी भी उस के सबब थी
मोहब्बत का सेहरा भी उस दिल के सर है
कोई आ रहा है कोई जा रहा है
समझते हैं दुनिया को ख़ाला का घर है
न कोई पयाम उस की जानिब से आया
न मिलता कहीं अब मिरा नामा-बर है