भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे लिए / क्रांति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे तुम्हारे लिए
लिखनी है, एक कविता
जो बिना पोंछे भी सोख सके
तुम्हारे माथे का पसीना ।

मुझे तुम्हारे लिए
बुनना है एक सपना
तुम्हें अच्छा लगे जो पूरा करना ।

मुझे तुम्हारे लिए
करनी है एक प्रार्थना
जिसे सुनते ही ईश्वर कह उठे
तथास्तु ! तथास्तु !