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तुम्हारे लिबास / अनिमेष मुखर्जी
Kavita Kosh से
तुम्हारे लिबास
कम-ज़्यादा
आधे-पूरे
चमकते-सादा
चाहे जो हों
फर्क नहीं!
इस शहर की तहज़ीब है
तमाशा देखना।