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तुम्हारे वसंत का प्रेमी / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ
तुम कहीं भी जाओ
तुम्हारे होने की ख़ुशबू
मुझ तक आती रहेगी
हवाएँ तुम्हारे गीत बाँधकर
दिशाओं के हर कोने से मुझ तक लाएँगी
मैं तुम्हारे खिलाए फूलों में
तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श चूमूँगा
तुम्हारी पलक छुऊँगा
तुम्हारे स्वप्न से भरी कोंपलों में
झरनों के निनाद में
तुम्हारी हँसी गूँजेगी
पलाश-वन को निहारेंगी मेरी आँखें
जो रंगी हैं तुम्हारी काया की रंगत में
मैं तुम्हें खोजने
देशावर भटकूँगा
तुम मुझे भूलना मत
लौटना हर बार
मैं तुम्हारी राह तकूँगा...
मैं तुम्हारे वसंत का प्रेमी
तुम्हारी ऋतु का गायक हूँ