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तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या / शहरयार
Kavita Kosh से
तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या
कि तुमने चीख़ों को सचमुच सुना नहीं है क्या
तमाम ख़ल्के-ख़ुदा इस जगह रूकी क्यों है
यहाँ से आगे कोई रास्ता नहीं है क्या
लहू-लुहान सभी कर रहे हैं सूरज को
किसी को ख़ौफ़ यहाँ रात का नहीं है क्या
मैं एक ज़माने से हैरान हूँ कि हाकिमे-शहर
जो हो रहा है उसे देखता नहीं है क्या
उजाड़ते हैं जो नादाँ इसे उजड़ने दो
कि उजड़ा शहर दोबारा बसा नहीं है क्या