भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे साथ भी तन्हा हँ तुम न समझोगे / फ़रहत शहज़ाद
Kavita Kosh से
तुम्हारे साथ भी तन्हा हूँ तुम न समझोगे
मैं अपने ख़्वाब का साया हूँ तुम न समझोगे
तुम्हारे प्यार में जो मुझसे अजनबी ठहरी
मैं वो ख़ुशी की तमन्ना हूँ तुम न समझोगे
चुरा के आँख मिलाते हो तुम नज़र जिससे
मैं आईने का वो चेहरा हूँ तुम न समझोगे
तुम्हें क़रार<ref>सांतवना</ref> है `शहज़ाद' से, मुझे तुमसे
रक़ीब आप मैं अपना हूँ तुम न समझोगे
शब्दार्थ
<references/>