तुम्हारे हाथ में टँककर / कुँअर बेचैन


तुम्हारे हाथ में टँककर बने हीरे, बने मोती बटन, मेरी कमीज़ों के।

नयन को जागरण देतीं

नहायी देह की छुअनें

कभी भीगी हुईं अलकें


कभी ये चुंबनों के फूल

केसर-गंध-सी पलकें

सवेरे ही सपन झूले

बने ये सावनी लोचन

कई त्यौहार तीजों के।


बनी झंकार वीणा की

तुम्हारी चूड़ियों के हाथ में

यह चाय की प्याली

थकावट की चिलकती धूप को

दो नैन, हरियाली

तुम्हारी दृष्टियाँ छूकर

उभरने और ज्यादा लग गए

ये रंग चीज़ों के।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।

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