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तुम्हारे हाथ / श्वेता राय

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तुम्हारे हाथ
सृष्टि में जीवन की आश्वस्ति हैं

ये समृद्धि के द्योतक
सामर्थ्य के उद्घोषक हैं
ये जानते हैं कला, धूल से आभूषण बनाने की

सूर्य के सातों अश्वों के
मत्स्य रूप को
तुमने अपनी भुजाओं में दिया है निवास

शेषनाग के फण की शक्ति को
अपनी कलाई का कलेवा बनाये हुए तुम
नियंत्रित करते हो धरती की गति को..

तुम्हारी उँगलियों के पोर से
झरते हैं मधुमास
हथेलियों की थाप से बरसते हैं मेह

तुम्हारी दस उँगलियाँ
प्रतिबिम्बित करती हैं दस दिशाओं को
जिनके सौरष्ठ से धरती पाती है गुरुत्व

ये जानती हैं
लक्ष्मी और सरस्वती को एक ही डोर में बांध
गले की ताबीज बनाना..

मस्तिष्क के भी सारे तंतु
तुम्हारी हस्त रेखाओं के ही समिष्ट हैं

धन, धान्य, आभूषण से तुम्हें कब पड़ता है फर्क?

तुम्हारे पास तुम्हारे दो हाथ हैं
जिनके मूल में
स्वंय बसते हैं जगन्नाथ
जो बनाते हैं तुम्हें दुनिया का सबसे धनवान पुरुष

इनको जोड़ कर
संतुष्टि के लिए तुम करते हो प्रार्थना
और प्रेम के लिए
इनको फैला कर बन जाते हो याचक

इनकी ही माया से तुम हो पाते हो दृढ प्रतिज्ञ

ये ही बनाते हैं तुम्हें दीवार
जिनपर भित्ति चित्र बनाती हुईं कई रूपसियां
शूल में भी उकेर देती हैं फूल
दारिद्र्य में भी सहेज लेती हैं वैभव

कमजोर समय में तुम्हारे हाथ,जानते हैं गढ़ना आश्वस्ति

आश्वस्ति संबंधो की
आश्वस्ति प्रबंधो की
आश्वस्ति विश्वास की
आश्वस्ति प्रयास की

सुनो!

एक स्त्री को
इस मिथ्या जगत् में
भला और क्या चाहिए
यदि उसके हाथ में तुम्हारे हाथ जैसी आश्वस्ति हो....

【पुरुष सौंदर्य】