भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे होंठ / श्वेता राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे होंठ
मीठे जल के सरोवर हैं
जिनपर इच्छाओं की मछली डुबकी लगा
मन के समन्दर में कर जाती हैं प्रवेश

इनके तटबन्धों को
तुमने घेर लिया है कोरवां राशि की चट्टानों से
पर इनके परिक्षेत्र की भूमि होती है बड़ी उर्वरक

जिनपर उगती हैं
फलती और फूलती हैं
भावनाओं की केसर फुलवारियां

ऊपर से सख्त
नीचे से नरम प्रवृति वाले तुम्हारे होंठ जानते हैं
किसी भी मृत दिवस को
चूम कर जीवंत कर देना

और ये गढ़ते हैं प्रथम सोपान नव सृजन का

इनपर
किलकारी की लय है
जिसकी धुन पर झूमते हुए जीवन को लयकारी मिलती है...

इनपर बादलों का घर है
जिनकी बूंदें
चूम कर धरती को कर देती हैं हरी भरी

इनपर मरीचिकाओं का भी वास है
जिनकी तृष्णा में
कई मृगया खो देती हैं अपना धैर्य

ये जानते हैं
आकाश बन धरती पर झुक जाना
ये जानते हैं
जलधि बन नदी को स्वंय में समाहित कर लेना

कोई संकोच नही
कोई हिचक नही

क्योंकि इन्हें भलीभांति पता है
भाषा को कैसे दिया जाए व्यवहार

कृष्ण की मुरली हो
या बिस्मिलाह की शहनाई
ये सदियों से अपने घर में देते रहे हैं प्रेम को शरण

शहतूत से रससिक्त,धूसर, कन्हाई रंग में लिपटे
ये जानते हैं
चूम कर
झील की पीर को सजल कर देना
और छोड़ जाना एक मीठा खट्टा स्वाद

अविस्मरणीय
अनिवर्चनीय
अवर्णनीय

ऐसे होंठों पर
कौन स्त्री नही चाहेगी
अपने भार को टिका स्वंय से मुक्त होना...

【पुरुष सौंदर्य】