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तुम्ही को रूह के अंदर तलाश करना है / रविकांत अनमोल

तुम्हीं को रूह के अंदर तलाश करना है
तुम्हीं को जिस्म के बाहर तलाश करना है

जो प्यार ख़ुद को भुलाने की वज्ह बन जाए
वो प्यार ख़ुद को गँवा कर तलाश करना है

तलाश किसकी है मेरी उदास आँखों को
न जाने कौन सा मंज़र तलाश करना है

तू जिस मक़ाम पे भी है उसे समझ आग़ाज़
मक़ाम और भी बेहतर तलाश करना है

जहां से बे-ख़ुदी मुझको ज़रा सी मिल जाए
अभी तो ऐसा कोई दर तलाश करना है

वो झूमती हुई मुझको सुराहियाँ तो मिलें
वो नाचता हुआ साग़र तलाश करना है

तुम्हारे वास्ते जैसे भटकता हूँ अब मैं
तुम्हें भी कल मुझे खो कर तलाश करना है

मैं तेरे दर को ही अक्सर तलाश करता हूँ
मिरा तो काम तिरा दर तलाश करना है

तुम्हीं हो रास्ता 'अनमोल' तुम ही मंज़िल हो
डगर डगर तुम्हें दर-दर तलाश करना है