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तुम्हें अधिकार नहीं / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
माना
कि कठिन है समय
अच्छी नहीं परिस्थितियाँ
ठीक नहीं है कुछ भी
बिखर रही हैं आशाएँ
सिमट नहीं रहा भावों का बिखरना
जुड़ नहीं पा रही कड़ियाँ सभी
मूक हैं हल
अन्तस तक टूट रहा सब
छूट रहा सब्र
नहीं मिलता तिनका
उबर आने के लिए
माना
प्रयास मंद हुए हैं
परन्तु प्रयास जारी तो है
क्यूँ न अन्तिम श्वास हो
पर क्यूँ न बाक़ी आस हो
माना
कि कठिन है समय
लेकिन
इन सब के बीच
साथी नहीं छूटा
वो अब भी है न
छाँव बनकर
पुरवाई बनकर
नमी बनकर
शक्ति बनकर
भले ही
कठिन है समय बीत जाएगा संग-संग
सुनो
अब तुम्हें अधिकार नहीं
हार जाने का