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तुम्हें अर्पण करें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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20
तर्पण करें
आओ सब सम्बन्ध
रुलाने वाले
धोखा देकर हमें
सदा सताने वाले।
21
एक तुम हो
जीवन में यों आए
खुशबू जैसे
जो कुछ है पास
तुम्हें अर्पण करें।
22 (9-5-2019)
चले जाएँगे
कहीं बहुत दूर
गगन- पार
तब पछताओगे
हमें नहीं पाओगे।
23
कुछ न लिया
हमने दुनिया से
तुमसे मिला
दो घूँट अमृत था
उसी को पी मैं जिया।
24
करते रहो
पूजा ,व्रत,आरती
धुलें न कभी
दाग़ उस खून के
जो अब तक किए।
25
स्वर्ण पिंजर
कैद प्राणों का पाखी
जाए भी कहाँ
न कोई सगा
सब देते हैं दगा।
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