तुम्हें जब रु-बरु देखा करेंगे
ये सोचा है बहुत सोचा करेंगे
नज़र में चौहदवी का चाँद होगा
समुन्दर की जुबान बोला करेंगे
तुम्हारा अक्स जब उतरेगा दिल में
बदन में आईने टूटा करेंगे
बिछड़ना है तो ये तय कर लें अभी से
जुदाई का सफ़र तनहा करेंगे
न आयेगा कोई इलज़ाम तुम पर
हम अपने आप को रुसवा करेंगे
एक उलझन में कटी है उमर मोहसिन
के पल दो पल में हम क्या क्या करेंगे