भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हें जिस ओर भी रस्ता मिलेगा / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हें जिस ओर भी रस्ता मिलेगा
हमारा ही वहाँ चर्चा मिलेगा
फ़क़त सच्चाइयाँ है जो दिखाता
वो हर इक आइना टूटा मिलेगा
अगर हरियालियाँ यूँ ही मिटीं तो
नहीं फिर धूप में साया मिलेगा
न रोको राह दरिया की कभी भी
समन्दर से किसी दिन जा मिलेगा
अगरचे दोस्त बन जायें किताबें
न दिल तुम को कभी तन्हा मिलेगा
लगा दो पेड़ पौधों की कतारें
जहाँ पूरा तुम्हे महका मिलेगा
भटकते ही रहोगे रास्तों पर
न ग़र दीपक कोई जलता मिलेगा