तुम्हें पता है कि नहीं! / अनुपम कुमार
तुम्हें पता है कि नहीं!
जब हम तुम थे पास
तो प्यार चुप था बड़ा उदास
सोचकर
कि हम एक दूसरे के
मन की बात
न बोल कर भी
कैसे समझ लेते थे
कोने में कैसे काम परेशान था
देखा था कि नहीं तुमने
कैसे हमसे था मुंह फुलाए
जब उसका काम नहीं बना
जब उसके बाण निष्काम हुए
वरना अबतक तो वो
कई काम करवा चुका होता
जो उसका हमपे बस चलता
विरह भी मन मसोसकर रह गया
कि हम तुम पे उसका भी
कोई काला जादू चला नहीं
हम तुम में विरह को भी
जगह नहीं मिल पाई कहीं
मिलन को भी देखा
पार न की उसने रेखा
मिलन को भी अधिक
भाव कहाँ मिला हमसे कहीं
ये भी पता है कि नहीं तुम्हें
जीवन आँखें दिखाना चाहता था
हम तुम ने कैसे नज़रंदाज़ किया था उसे
मृत्यु को बड़ा गर्व रहा था
कैसे उसका गर्व तोड़ा था हम-तुम ने
ये सब याद है तुम्हें कि भूल गयीं
हम तुम में क्या है ये
बताने कि ज़रूरत न मुझे पड़ी
न तुम्हें ही हुई होगी शायद
क्योंकि
हम हैं प्रेम की परिधि के पहरेदार
प्यार के नो मैन्स लैंड के सैनिक
हम हवा जैसे हैं
हैं भी नहीं भी
हम पानी जैसे हैं
कई रंगों को क़ैद किये हुए
हम उन्मुक्त वायरस
हम अणु परमाणु
हम प्रेम का पंचीकरण
हम तुम अनुपम