तुम्हें प्रेम करते हुए अहर्निश / अशोक कुमार पाण्डेय
तुम्हें प्रेम करते हुए अहर्निश
गुजर जाना चाहता हूँ
सारे देश देशान्तरों से
पार कर लेना चाहता हूँ
नदियां, पहाड़ और महासागर सभी
जान लेना चाहता हूँ
शब्दों के सारे आयाम
ध्वनियों की सारी आवृतियां
दृश्य के सारे चमत्कार
अदृश्य के सारे रहस्य.
तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
इस तरह चाहता हूँ तुम्हारा साथ
जैसे वीणा के साथ उंगलियां प्रवीण
जैसे शब्द के साथ संदर्भ
जैसे गीत के साथ स्वर
जैसे रूदन के साथ अश्रु
जैसे गहन अंधकार के साथ उम्मीद
और जैसे हर हार के साथ मज़बूत होती ज़िद
बस महसूस करते हुए तुम्हारा साथ
साझा करता तुम्हारी आँखों से स्वप्न
पैरो से मिलाता पदचाप
और साथ साथ गाता हुआ मुक्तिगान
तोड़ देना चाहता हूँ सारे बन्ध
तुम्हे प्रेम करते हुए अहर्निश
ख़ुद से शुरू करना चाहता हूँ
संघर्षो का सिलसिला
और जीत लेना चाहता हूँ
ख़ुद को तुम्हारे लिये।