तुम्हें फाँसी नही होगी / तुषार धवल
मेरी खिड़की पर चिपके हुए हैं
माँस के लोथड़े
हवा में जली हुई लाश उड़ रही है
दीवारों पर सूख़ गई है लहू की धार
कल शाम फिर बम फटा था बाज़ार में
कल शाम फिर एक चाल थी बिसात पर
हँसती हुई दुनिया
शिनाख्त में बेपहचान पाई गई
कौन मर गया ?
होगा कोई
अब मुआवजों की काली छाया
हू हू कर नंगा नाचेगी
यह ऐलानों का दौर है
बेहतर है हम मसरूफ़ रहें
तफ़्तीश तबादले जिरह
कई-कई अध्याय हैं रंगमंच पर
कोई सिर धुनेगा
बटोरेगा वाहवाही
जालसाजी
जालसाजी
यह लीला है महामानवों की
कुर्सियाँ भयानक मुखौटे लगा कर
सड़कों पर चलती हैं
आतंक का तुम्हारा चेहरा
उसी की आँत से उपजा है
निश्चिंत रहो
तुम्हें फाँसी नहीं होगी
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एक दंगल है
जो चलता ही रहता है
एक जंगल है
जो जलता ही रहता है
हमारे घर उसी में थे
हम बया हैं
हम बकरियाँ हैं
इससे ज़्यादा हमें क्या चाहिए
नारे कोई भी रहे
सिर्फ़ हम ही हम उजड़े
तुम्हीं हाँकते
हलाल करते हो
हमारे लहू से ही
अंगडाई ले उठता है तुम्हारा ताज
भले ही तुमने
हज़ार हत्याएँ की हों
तुम दुलारे तंत्र के
तुम्हें फाँसी नहीं होगी
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एक छत चूती हुई बताई गई थी
तुम उस सुराख़ से
आकाश ताड़ गए
नंगी हमारी पीठ को झुकाया
सजदे के बहाने
लाद कर नंगों पर नंगी पीठों को
सीढियाँ आजमाई हुई चढ़ गए
सीढियों के स्मारक बने हैं
सुंदर सुनहरे
देख कर भी नहीं देखा किसी ने
वहाँ हमारे ढेर दफ़्न हैं
बादशाहत में हाथ काटे गए
लोकतंत्र में सिर
धडों की यह आबादी
तुम्हारी व्यक्तिगत क्रांतियों में
कच्चा माल बनी हुई हैं
ये शीशों के टुकड़े
ये आईने लहू के
हमारी काली हथेलियों पर उग रहे हैं
तब तक तुम हँस सकते हो
तब तक
तुम्हें फाँसी नहीं होगी