तुम्हें बरसना आ जाता / उर्मिलेश
मेरी आँखों से अगर दोस्ती कर लेते,
बादलों, ठीक से तुम्हें बरसना आ जाता I
तुम गरज-गरज कर अक्सर शोर मचाते हो,
मैं चुप होकर हर घुटन-त्रास सह लेता हूँ,
तुम हवा, उमस, गर्मी के हो अनुचर लेकिन,
मैं भरी भीड़ में एकाकी रह लेता हूँ,
तुम मेरे अनुगामी बनकर यदि चलते तो,
दुख में भी खुलकर तुम्हें विहँसना आ जाता I
प्यासी धरती जब तुम्हें निमंत्रण देती है,
तुम एक बरस में चार माह को आते हो,
इस छोर कभी, उस छोर स्वार्थ की वर्षा कर
नीले बिस्तर पर एकाकी सो जाते हो;
मेरे चरित्र को थोड़ा भी जी लेते तो,
प्यार की आग में तुम्हें झुलसना आ जाता I
तुम बिजली की टार्च से देखते धरा-रूप,
तुम दरस-परस का असली सुख कब जीते हो,
यों तो सब तुमको पानीदार समझते हैं,
लेकिन आँखों के पानी से तुम रीते हो;
तुम मेरी तरह बूँद भर अश्रु गिरा लेते,
तो यक्ष-दूत-सा तुम्हें हुलसना आ जाता I