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तुम्हें बस खुद को उबारना है / आलोक कुमार मिश्रा

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मत बताना किसी लकड़हारे को
जंगल का महत्त्व,
उसकी आत्मा ने चखा है जंगलों का स्वाद
वह सखा है जंगल का।
हो सके तो लाकर देना उसे
नई कुल्हाड़ी।
नये जंगल उगाना तुम्हारा काम है।

किसी मछुवारे को मत देना
जीव-हत्या के पाप पर प्रवचन,
दे सकना तो देना लाकर उसे
फटते जाल के बदले कोई नया जाल।
छटपटाता है संमदर तड़पती हैं मछलियाँ
एक दिन भी न पाकर उसे,
उस दिन संमदर आ बसता है उसकी आँखों में
और मछलियाँ तैरने लगती हैं सपनों में।

तुम्हारे धर्म की जद से बाहर हैं कई सभ्यताएँ।
उन्हें बाहर ही रहने दो।

किसी बच्चे से मत लेना
उसे दिये दस रूपये जेब खर्च का हिसाब।
तुम्हारी जोड़-तोड़ की मंशा से परे
खर्चा होगा उसने उसे,
दुनिया खूबसूरत बनाने में ही।
उसने खाई होंगी मीठी गोलियाँ
दोस्तों के साथ,
उछाला होगा एक सिक्का गली के मुहाने पर बैठी बुढ़िया की ओर,
खरीद कर अर्पित किये होंगे कुछ कंचे
धरती माँ को भी।

ध्यान रहे
तुम्हें दूसरों को नहीं
बस खुद को उबारना है।