भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हें बाहों में बाँधकर / नन्दकिशोर नवल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हें बाँहों में बाँधकर
मैंने सारे आकाश को बाँध लिया है ।
तुम्हारे होठों को छूकर
मैंने संसार के तमाम खिले हुए फूलों का
रसपान किया है ।
तुम्हारे वक्षस्थल की गरमाई
मुझमें अनन्त जन्मों की ऊष्मा का संचार करती है ।
तुम्हारी देह
उन सहस्त्र तारों वाली वीणा की तरह है,
जो कि एक आदिम संगीत से
सारे जंगल को
भरती है ।