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तुम्हें भी शहर के चौराहे पर सजा देंगें / शीन काफ़ निज़ाम
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तुम्हें भी शहर के चौराहे पर सजा देंगें
तुम्हारे नाम का पत्थर कहीं लगा देंगें
कुछ और पास नहीं तो किसी को क्या देंगें
किसी ने आग लगा दी तो हवा देंगें
ये और बात कि वो उसकी क्या सजा देंगें
जमाने वालों को हम आईना दिखा देंगें
बिछ़डते वक्त किसी से, ये जी में सोचा था
भुलाना चाहा तो सौ तरह से भुला देंगें
किताबे-जीस्त के औराक जल नही सकते
ये माना मेज से तस्वीर तो हटा देगें
‘कंहा से आये हो लेकर ये खाक खाक बदन’
किसी ने पुछ लिया तो जवाब क्या देगें
उसी के साये में पलती है न ये दर्द की बेल
उजाड़ उम्र की दीवार ही गिरा देगें
जुदाईयों के है जंगल में जात के राही
ये वहम दिल में कि हम फासले मिटा देंगे