तुम्हें भूल पाना / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'
बहुत संभव होगा कि एक दिन विस्मृति
अपना काम कर गुजरेगी तो बहुत सम्भव हो जाएगा उस दिन तुम्हे भूल जाना,
तुम गुम हो जाओगी हृदय की किसी भित्ति में
जहाँ तुम्हारी स्मृतियों के बगैर भी रक्त दौड़ेगा ओर
जिम्मेदारियों के बोझ में कहीं दब कर रह जायेगी वो यादे जिनमे तुम अक्सर
हँस कर कह दिया करती थी मुझे
की तुम भूल जाओगे मुझे एक दिन ओर
मैं तुमसे वादा करता था जीवन के अंतिम क्षण तक तुम्हारे साथ, साथ निभाने का
वो मेरी लिखी एक कविता तुम्हें जरूर याद होगी
जिसमे मेने तुमसे कहा था की
"अंतिम सांस हो
इस से ना कम कोई बात हो,
लेकिन इस कविता में किये तुमसे वो वादे ओर जिंदगी की जिम्मेदारियां में मुझे वो सब रहा
सिवाय इसके की मैं चाहकर भी याद नही रख पाया
तुम्हें, क्योकि ये जिम्मेदारियां असल मे
मजबूर कर देती थी हमे वो सब भूलने को जिनको हम चाहकर भी कभी याद नही रख पाते