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तुम्हें यह तुम्हारा ज़माना, यह ओबामा मुबारक़! / दयानन्द पाण्डेय

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तो तुम ओबामा के साथ गप्प मारते हो!
अभी उस दिन तुम्हीं यह बात
पूरी ढिठाई से कह रहे थे
ओबामा के सामने ही
लेकिन हिंदी में

कुछ ज़्यादा नहीं हो गया?
इतना समय मिल जाता है?
लेकिन
चलो मान लेता हूं तुम्हारा यह गप्प भी

इस लिए भी मान लेता हूं कि
जिस तरह उस रोज हैदराबाद हाऊस में
तुम घूम रहे थे ओबामा के साथ बतौर मेज़बान
तुम मेज़बान कम अल्सेसियन ज़्यादा लग रहे थे
चाय बना-पिला रहे थे
तुम्हारी इस खुशकिस्मती पर बहुत लोग जल भुन गए
कुत्तों का कुत्तों से जलना और भूंकना
पुरानी रवायत है
सो उन के इस जल भुन जाने पर ऐतराज है मुझे

लेकिन
दिक्कत यह है कि तुम दोनों
अपनी बात को पक्का करने के लिए
विवेकानंद, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर
जैसों के नाम भी उच्चारते रहते हो

तुम दोनों यार
विवेकानंद, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर
या इन जैसे लोगों को बख्श नहीं सकते
यह तुम्हारे बाज़ार का तिलिस्म और इस का राक्षस
क्या कम पड़ता है लोगों को लुभाने और छलने के लिए
यह राजा का बाजा बजाने वाली मीडिया
क्या कम पड़ती है तुम लोगों का ईगो मसाज करने के लिए
जो इन गरीब और संत लोगों का नाम भी
तुम लोग लेने लगते हो

तुम दोनों जो अपनी दोस्ती का दाना बिछा कर
दुनिया को फ़रेब की चाशनी में चाभ कर
मीडिया को अपनी लंगोट में बांध कर
अपने-अपने जादू का तमाशा दिखा रहे हो
तुम दोनों को क्या लगता है कि समूची दुनिया एक कबूतर है
और तुम दोनों बहेलियों के जाल में फंस जाएगी

यह ठीक है कि तुम झूठ और गप्प के मामले में
इस सदी के सब से बड़े आचार्य हो
आचार्य श्रेष्ठ
तुम्हारे झूठ के सलीके पर बड़े-बड़े सदके मारते हैं
निसार हैं तुम पर
तुम्हारे सलीकेदार झूठ और गप्प पर
ऐतबार भी न करें तो करें भी क्या लोग

अच्छा कभी अपने यार ओबामा से अपनी गप्प में
तुम ने कभी कहा नहीं क्या कि
यह आतंकवाद की फैक्ट्री पाकिस्तान को
करोड़ो डॉलर की इमदाद और हथियार देना बंद कर दो यार
हमारा देश इस से बहुत मुश्किल में है
हमारे देश की देह का एक हिस्सा कश्मीर बहुत घायल है
इस देह में और भी बहुत से घाव हैं
पाकिस्तान की ख़ुराफ़ात से
बंद करो उस मुए पाकिस्तान को सारी इमदाद
तुम्हारी इफ़रात और हराम की यह इमदाद
हमारे देश को तहस-नहस कर रही है

तुम ने कहा नहीं कि
उस ने सुना नहीं
क्या पता

तुम कहते हो कि बातों को परदे में रहने दो
रहने देते हैं
सियासी और कूटनीतिक बातों में वैसे भी फ़रेब बहुत होता है
इस हलके में
अश्वत्थामा मरो, नरो वा कुंजरो की भाषा और रवायत बहुत पुरानी है
सो मान लेते हैं यह परदेदारी भी

अच्छा तुम बताते ही रहते हो जब-तब कि
कभी तुम चाय बेचते थे
तुम्हारे दोस्त का दादा भी रसोइया था
तुम भी पिछड़ी जाति से आते हो
तुम्हारा दोस्त भी ब्लैक है
दोनों की यातना और दोनों के संघर्ष का संयोग
तुम दोनों की दोस्ती का रंग और गाढ़ा करता है
पर अब यह दुःख, यह संघर्ष अब अतीत है
और सुख के दिनों में
अतीत का दुःख भी कई दफ़ा सुख बन कर छलकता है
छलक ही रहा है तुम दोनों दोस्तों के दर्प में
लेकिन वर्तमान का दुःख, दुःख ही छलकाता है, सुख नहीं

यक़ीन न हो तो
आज वर्तमान के किसी चाय वाले से ही कभी बात कर लो
गप्प मार लो और पूछ लो उस से धीरे से
कि तुम्हारी अपनी चाय का खर्च भी कैसे चलता है
तुम्हारे घर की रोटी, दाल और सब्जी कैसी चल रही है
दवा दारु का इंतज़ाम कैसे करते हो

जानते हो
वह रो पड़ेगा,
तुम्हारे गप्प में वह साथ नहीं दे पाएगा
मंहगाई, भ्रष्टाचार और तुम्हारे झूठ, तुम्हारे गप्प के भार में
दबा-कुचला वह तुम्हारे गप्प से त्राहिमाम कर लेगा

अच्छा कभी अपनी मां या छोटे भाइयों से भी तुम्हारी बात नहीं होती
मां तो तुम्हारी बर्तन साफ करती थी तुम्हारे बचपन में
अभी भी बहुत ठाट-बाट से नहीं रहती
तो तुम्हारी मां या भाई भी तुम्हें खाने-पीने की चीज़ों के बढ़े दाम नहीं बताते
नहीं बताते कि दिसंबर-जनवरी में दस-पांच रुपए किलो में बिकने वाली मटर
इस बरस पचास रुपए किलो बिक रही है, टमाटर तीस
नहीं बताते तुम्हें कि काजू बादाम सोने के भाव बिक रहा
काजू बादाम के भाव दाल और सब्जी बिक रही है
दाल के भाव पर आटा और आटे के भाव भूसा बिक रहा है
कैसे तो मूलभूत चीज़ें भी आम आदमी के हाथ से निकल गई हैं
अस्पताल और स्कूल अब सब की पहुंच से बाहर हो कर
लूट के नए अड्डे बन गए हैं

खैर छोड़ो
अब यह सब तुम्हारे वश और कौशल का काम नहीं रहा

जीवन और दिनचर्या वैसे भी
किसी गप्प, किसी कूटनीति से नहीं चलती
राजनीतिक दांव-पेंच से नहीं चलती
किसी जादू और तमाशे से नहीं चलती
फ़रेब की चाशनी में चाभ कर
मीडिया को लंगोट में बांध कर नहीं चलती
मंहगाई तुम्हारे लिए सूचकांक होती है,
आंकड़ेबाज़ी का खेल होती है
लेकिन एक छोटी सी रुपए, दो रुपए की मंहगाई भी
बहुतायत लोगों की छोटी सी दुनिया कैसे बदल देती है
कितना उथल-पुथल से भर देती है
चाय वाले प्रधानमंत्री तुम क्या जानो

यहां लोग ग़रीबी, मंहगाई, कुपोषण,
सांप्रदायिकता, जातीय जहर, आतंकवाद से छटपटा रहे हैं
और तुम हो कि गप्प मार रहे हो
कैसे मार लेते हो तुम लोग ऐसे में कोई गप्प भी

वह भी उस हिंसक देश के राष्ट्रपति से गप्प मारते हो
जिस ने समूची दुनिया को कसाईबाड़े में तब्दील कर दिया हो
अपना हथियार बेचने के लिए, अपनी दादागिरी जमाने के लिए

तुम ने सुने ही होंगे धर्मराज युधिष्ठिर के किस्से
नहीं सुने हैं तो सुन लो और जान लो
उस ने भी ऐसे ही कई छल और गप्प के कई कीर्तिमान रचे थे
छोटे भाई ने औरत जीती, मां ने कहा बांट लो
बांट लिया
लेकिन पहले मां को यह नहीं बताया कि औरत जीत कर लाए हैं
फिर उस औरत को भी भरी सभा में जुए में दांव पर लगा कर हार गया
गुरु के साथ भी छल किया
अश्वत्थामा मरो, नरो वा कुंजरो की भाषा में
वह भी धर्मराज था, तुम भी प्रधानमंत्री हो
उस का भी दोस्त कृष्ण था, जैसे तुम्हारा ओबामा है
सॉरी तुम उसे बराक कहते हो
बराक यानी आशीर्वाद प्राप्त शख़्स
कृष्ण तो सब को आशीर्वाद ही देता था

अच्छा कभी भूल कर भी तुम से किसी गप्प में
वह यशोदा बेन के बारे में नहीं पूछता
पूछता है तो तुम किस तरह उस का सामना करते हो
और डिप्लोमेसी की किस तरकीब से उसे टालते हो
किस जादू से उस पर परदा डाल देते हो
देश जानना चाहता है

तो हे इवेंट मैनेजमेंट के राजा
कार्पोरेट की आवारा पूंजी के बाजा
निश्चित ही तुम एक सफल आदमी हो, सफल राजनीतिज्ञ भी
एक तुम ही क्या
दुनिया के हर हलके में आज
जो जितना बड़ा नौटंकीबाज़ है
झूठा, गपोड़ी और जालसाज है
जो जितना बड़ा चालबाज़ और करिश्मेबाज़ है
जो जितना बड़ा फ़रेबी और मक्कार है
वही अव्वल है, वही टॉपर है, वही रंगबाज़ है
ज़माना उसी का है, इवेंट मैनेजमेंट का है
तुम्हें यह तुम्हारा ज़माना, यह ओबामा मुबारक़!

[29 जनवरी, 2015]