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तुम्हें याद करते हुए / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

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ड्राइंगरूम,
पीछे का कमरा,
आगे का कमरा,
ऊपर, नीचे
कहाँ गये पिता?
पिता कहाँ गये?
एक बीमार बूढ़ा आदमी
कहाँ तक जा सकता है
बाहर पान की दुकान भी खाली
कहाँ बंद हुआ था
अभी तक धूम्रपान
वैधानिक चेतावनी के बावजूद
खिंचवायी थी फोटो
सिगरेट पीते हुए
बड़ी शान से
हर फिक्र को फिर भी
धुएँ में कहाँ उड़ा पाये
सहेजी हुई हैं अभी तक
अंधकार में स्मृतियाँ
तैयार तो था सामान
घर छोड़कर जाने के लिए
क्या कोई ले जा पाया है
कुछ साथ अपने
सबसे ऊपर की छत तक
चढ़ गया हाँफते-हाँफते
बैठे थे पिता
अपनी पुरानी कुर्सी पर
खरीदी थी जो सबसे पहले
घर बसाने के बाद
आज कुर्सी की तरह
निहारते उन सबको
छोड़ जाना होगा जिनको
जाने कब लौटकर आना हो
ना आना हो
किस समय, काल और पथ में
निश्चित है एक दिन मौत का
ईंट-पत्थरों का या देह का
आखिरी बार भर लें
अपने अंदर सब-कुछ
फिर जाने कब तक
कुछ देख नहीं पायेगा
अटकी है एक बूँद आत्मा
आँखों की कोरों में
गिरी कि अब गिरी
और धूल में मिली।