Last modified on 11 मई 2009, at 17:03

तुम्हें लिखूंगा मैं चिट्ठी / रवीन्द्र दास

तुम्हें चिट्ठी मैं लिखूंगा
जो हो फ़ुर्सत तो पढ़ लेना
नहीं, मैं कह नहीं पाता जुबाँ से
बात मैं अपनी
कि मैं आकाश हो जाऊँ
अगर तुम हो गई धरती
तुम्हारी मरमरी बाँहों को छू कर छिप कहीं पाऊँ
मुझे तकलीफ़ होती है तुझे जब फ़ोन करता हूँ
कि गोया लाइन कटते ही
अकेला ही अकेला मैं
कभी फ़ुर्सत बना कर तुम
जरा दो हर्फ़ लिख देना
उसी को बुत बनाकर मैं
कभी तो प्यार कर लूंगा
तुमें मेरी लिखावट में मेरे ज़ज्बात के चहरे
तेरे बोसे को जानेमन
कहीं कोई शरारत कर उठे तो
माफ़ कर देना
कि उनका हक़ छिना है
तो बगावत लाजिमी है
नहीं देना उन्हें बोसा
न उनका मन बढ़ाना तुम
अगर मिल जाए जो चिट्ठी
तो पलकें बंद कर लेना
उसी सूरत में चिट्ठी जरा हौले से सहलाना
जरा हौले से सहलाना
जरा...।