भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हें वाकई मेरी ज़रूरत है / गब्रियेला गुतीयरेज वायमुह्स / दुष्यन्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो सारे साल जिन्हे मैं बुरे कर्मो वाले गिनता हूँ

मैं तुम्हें ख़त लिखूँगा
तुम अनजाने मेंं थे शाकाहारी अश्वेत
तुमने कभी नहीं पसन्द किया खाना
जानवरों के ख़ास अंग

कोई सूप या उबला हुआ कुछ भी
नहीं मजबूर कर सका
तुम्हें उसको खाने से
गुर्दे को भी नहीं खाते तुम
पखों में बुरी-सी गन्ध
लीवर में आॅक्सीजन से युक्त कुछ टॉक्सीन
तुमने कभी नहीं खाया उनका पिछला भाग

सूअर का गाय का
या फिर स्वाद से भरपूर तुर्की गुप्तांग भी

मेरी माँ ले आई थी
पौण्ड या डालर के दसवे हिस्से से
एक न्यूबैरिज।

तुम गाल भी नहीं खाते हो
उनके चुम्बनों को बचाने के लिए
उनकी आत्माओं के प्रेम जीवन को
ख़त्म होने से बचाने के लिए
ना ही अचार बनी हुई त्वचा को

तुम चाहते हो कि मैं रक्षा करूँ
तुम्हारे बुद्धिस्ट होने को

मैं जानता हूँ तुम अच्छे हो
क्योंकि तुम को पसन्द नहीं है
सूबर की चर्बी भी मेरी तरह से।

अँग्रेज़ी से अनुवाद — दुष्यन्त