भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हें हो न हो पर मुझे तो यकीं है / नक़्श लायलपुरी
Kavita Kosh से
तुम्हें हो न हो, मुझको तो, इतना यक़ीं है
मुझे प्यार तुमसे, नहीं है, नहीं है ….
मगर मैंने ये राज़ अब तक न जाना
कि क्यों प्यारी लगती हैं बातें तुम्हारी
मैं क्यों तुमसे मिलने का ढूँढूँ बहाना
कभी मैंने चाहा तुम्हें छू के देखूँ
कभी मैंने चाहा तुम्हे पास लाना
मगर फिर भी इस बात का तो यकीं है
मुझे प्यार तुमसे नहीं है, नहीं है …..