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तुम्‍हारे पति ने इतना और कहा है मुझसे / कालिदास

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भूयश्‍चाह त्‍वमपि शयने कण्‍ठलग्‍ना पुरा मे
     निद्रां गत्‍वा किमपि रुदती सस्‍वनं विप्रबुद्धा।
सान्‍तर्हासं कथितमसकृत्‍पृच्‍छतश्‍च त्‍वया मे
     दृष्‍ट: स्‍वप्‍ने कितव! रमयन्‍कामपि त्‍वं मयेति।।

तुम्‍हारे पति ने इतना और कहा है - एक बार
तुम पलंग पर मेरा आलिंगन करके सोई हुई
थीं कि अकस्‍मात रोती हुई जाग पड़ीं। जब
बार-बार मैंने तुमसे कारण पूछा तो तुमने
मन्‍द हँसी के साथ कहा - हे छलिया, आज
स्‍वप्‍न में मैंने तुम्‍हें दूसरी के साथ रमण
करते देखा।