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तुम ! / संजय शाण्डिल्य
Kavita Kosh से
तुम सच हो
या स्वप्न हो
हम कभी साथ थे भी
या साथ रहनेवाली बात
स्वप्न में देखी गई बात है
जो हो
मैं कुछ भी नहीं जानता
जानता हूँ बस इतना
कि हमने जो पल
साथ कहीं भी जिए हैं
इस जीवन के
अन्धकार में वे
जगमगाते दिए हैं !