तुम अनलिखी बात पढ़ लोगे / रंजना वर्मा
तुम अनलिखी बात पढ़ लोगे भाव समझ लोगे अंतर का
इसीलिए मैं बिना लिखे ही भेजा करती तुम को पाती॥
सबका अपना दर्द यहाँ पर
सबके अपने-अपने गीत,
कली कली का सुमन-सुमन का
सबका अपना-अपना मीत।
मन भावों को अधरों पर लाकर कैसे अभिव्यक्ति दिलाती।
इसीलिए मैं बिना लिखे ही भेजा करती तुमको पाती॥
दर्पण मित्र अकेलेपन का
रात बुलाती सपनों को,
गैरों में ढूँढा करती हूँ
खोये बिछड़े अपनों को।
कितने वादे कितनी बातें सौंपूं कैसे इनकी थाती।
इसीलिए मैं बिना लिखे ही भेजा करती तुमको पाती॥
जितने भाव सँजोये मन में
उन्हें शब्द क्या सह पायेंगे,
अधर खुले तो उमड़ी बातों
को क्या तुमसे कह पायेंगे?
मेहंदी रची हथेली सारी बातें इंगिति से बतलाती।
इसीलिए मैं बिना लिखे ही भेजा कर दी तुम को पाती॥