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तुम अपनी सब्ज़ आँखें बन्द कर लो / शहराम सर्मदी
Kavita Kosh से
बदलती रुत
मिरे माथे पे जो लिख्खेगी
वो सब जानता हूँ मैं
कि मैं ने अपने वालिद की
जवानी की वो तस्वीरें
बहुत ही ग़ौर से देखी हैं
जिन में वो
किसी की याद की परछाइयों को
अपनी आँखों में छुपाए
आसमाँ को तक रहे हैं
अब वो आँखें मेरी आँखें हैं
तुम अपनी सब्ज़ आँखें बन्द कर लो