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तुम आई हो / कुमार रवींद्र

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तुम आई हो
हमें खबर है मिली हवाओं से
 
धूप-नहाये चन्दन-वन की
ख़ुशबू व्यापी घर में
बोली हवा -
हुआ है जादू
फूल खिले पतझर में
 
देह सिहाई
छुआ हमें ऋतु ने इच्छाओं से
 
दुपहर भर सूरज ने की
साँसों में ताकाझाँकी
दिखीं आयने में भी छवियाँ
बनी-ठनी की बाँकी
 
साँझ हुए
गूँजा घर मीठी पुराकथाओं से
 
दिखी जुन्हाई
रात हवा से
हँस-हँसकर बतियाती
हुई और उजली
चौरे के दीये की बाती
 
सभी सुखी हों
घर-बाहर / मन भरा दुआओं से