Last modified on 2 अगस्त 2012, at 22:02

तुम आए, तुम चले गए / अज्ञेय

 तुम आये, तुम चले गये! नाता जोड़ा था, तोड़ गये।
हे अबाध! जाते अबाध सूनापन मुझ को छोड़ गये।
अशुभ विषैली छायाओं से, अब मैं जीवन भरता हूँ-
नीच अजान नहीं हूँ, प्रियतम! सूनेपन से डरता हूँ!

मुलतान जेल, 5 दिसम्बर, 1933