तुम आये, तुम चले गये! नाता जोड़ा था, तोड़ गये। हे अबाध! जाते अबाध सूनापन मुझ को छोड़ गये। अशुभ विषैली छायाओं से, अब मैं जीवन भरता हूँ- नीच अजान नहीं हूँ, प्रियतम! सूनेपन से डरता हूँ! मुलतान जेल, 5 दिसम्बर, 1933