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तुम आओगे / राधेश्याम ‘प्रवासी’
Kavita Kosh से
तु आओगे जब, मरु बसंत बन जायेगा,
चन्दा से करके प्यार चाँदनी चल देगी!
हर साँस तुम्हारी आशा के सम्बल पर है,
हर आश तुम्हारे आश्वासन के बल पर है,
तुम आओगे ! आरती दीप बुझ जाने पर
तारों से कर मनुहार यामिनी चल देगी!
मेरे रागों की स्वर सर्जना सिसकती है,
मेरे भावों की अभिव्यंजना तड़पती है,
तुम आओगे जब असम बीन की मीड़ों पर
तारों से कर अभिसार रागिनी चल देगी!
उर हारों की लड़ियाँ आँसू बन जायेंगी,
रजनीगन्धा की कलियाँ कुम्हला जायेंगी,
तुम आओगे विश्वास मृतक जीवित करने
जब मिलन विदा ले विपथ-गामिनी चल देगी!
विस्मृति झंझा में, जिसे सँवारा है मैने,
तन्मय होकर सौ बार पुकारा है मैंने,
तुम आओगे जब हृदय वेदना-घन-नभ पर
सुस्मृति चाहों की दमक दामिनी चल देगी!