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तुम आयीं कुछ इस तरह / निमिषा सिंघल
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माया बँध बंदी सभी
हैं अमर्त्य भावनाएँ ,
अभियुक्त तुम इस जीवन की,
आत्महंता लालसायें ।
मैं जिये बस जा रहा था,
मंजिल थी न विराम था।
आग थी न चांदनी थी
दिल को न आराम था।
हे प्रिय!
आना तुम्हारा
दुःख मेरा सब सोखता ।
है विरोधाभास जीवन
जीवन ताराजू तोलता।
बहती हो अंगार जिसमें
बिजली के से फूल की,
हैं चमकती ऑंखें हिरनी
तड़ित-सी है देह भी।
नाद हो अनहद ह्रदय की
मौन का संगीत सी।
बज उठी हो झाँझ जैसे,
आत्मा के गीत सी।
फेन बिखरा दूधिया सागर का
जगमग रात-सी।
रात में खिलती कली तुम
चंपा की बरसात सी।
रातभर बरसी हो बदली,
जैसे रेगीस्तान में,
तुम आयी कुछ इस तरह
अंधेरे में रोशनदान सी।