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तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: 2004

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था
बदली-बदली फ़िज़ा में कुछ अपना लगा
यह मौसम तो इक रोज़ आना ही था

इसे क्या कहूँ, क्या प्यार का नाम दूँ
तू अगर मिले मुझे तेरा हाथ थाम लूँ
मेरी एक यही ख़ाहिश है यही तमन्ना
इस ख़ाहिश ने मुझको रुलाना ही था

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था

तेरा नाम लूँ तो सुकूँ आता है कुछ-कुछ
तुम मिलने आओ कभी मुझसे सचमुच
हैं तेरी तस्वीर से अब बे-ताबियाँ मुझे
मुझसे साथ इनको यूँ निभाना ही था

तुम आये क्यों जब तुम्हें जाना ही था
मुझसे दूर जाकर मुझे भुलाना ही था