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तुम आये / नीरजा हेमेन्द्र
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					अँधेरी रात में चिराग बन के तुम आये।
पतझड़ में  गुलाब  बन के  तुम आये।।
मैं चली जा रही थी सूनी सड़क पर यूँ ही।
सूनेपन का  जवाब  बन  के तुम  आये।।
रास्तों के किनारे  दीये से  सजने  लगे।
दीये में प्रकाश बिम्ब  बन के तुम  आये।।
मेरे चमन का हर इक फूल खिलने लगा है।
फूलों में  शबाब  बन  के  तुम आये।।
अब मुझे भूले गीत फिर याद आने लगे।
मेरे गीतों में नया राग बन के तुम आये।।
 
	
	

